केरल पर सूखे का खतरा, अगस्त में सामान्‍य से 90 प्रतिशत कम बारिश

चेन्नई, 20 अगस्त (आईएएनएस)। दक्षिण-पश्चिम मानसून ने 8 जून को केरल के तटों पर दस्तक दी, लेकिन तब से मानसून की प्रगति निराशाजनक रही है और राज्य पर सूखे का खतरा मंडरा रहा है।

राज्‍य में 8 जून को पहली मानसूनी बारिश के बाद पिछले ढाई महीने से राज्य में लुका-छिपी का खेल चल रहा है। यहां जून से अगस्त के मध्य तक सबसे ज्यादा बारिश होती है, जो 2023 में बहुत कम रही है।

मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 1 जून से 15 अगस्त तक राज्य में औसत 1556 मिमी बारिश होती है, लेकिन इस साल 877.1 मिमी बारिश ही दर्ज की गई। इसका मतलब है कि 44 फीसदी कर्मी रही।

जून में बारिश की भारी कमी थी और मौसम विभाग के अनुसार, राज्य में 60 प्रतिशत की कमी थी, जबकि जुलाई में बारिश बेहतर थी और कमी केवल 9 प्रतिशत थी। हालाँकि अगस्त की स्थिति बदतर है क्योंकि राज्य के कई इलाकों में अगस्‍त में बारिश नहीं हुई है।

केरल में 1 अगस्त से 15 अगस्त तक सामान्‍यत: 254.6 मिमी की बजाय केवल 25.1 मिमी बारिश हुई। इस प्रकार लगभग 90 प्रतिशत बारिश की कमी हुई।

केरल में आम तौर पर अगस्त के दौरान बारिश चरम पर होती है जो मलयालम महीना ‘कारकिदाकम’ है और आयुर्वेद उपचार के लिए उपयुक्त है। हालाँकि बारिश नहीं होने से राज्य में बड़े पैमाने पर सूखे का खतरा मंडरा रहा है।

भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने भी भविष्यवाणी की है कि राज्य में अगले 15 दिन तक बारिश नहीं होगी और इससे सूखे की संभावनाएं बढ़ गई है। सितंबर में भी हालात अच्छे नहीं हैं क्योंकि इस महीने राज्य में आम तौर पर बहुत कम वर्षा होती है। जून से सितंबर तक चार महीने की मानसून अवधि के दौरान यहां औसतन लगभग 2018.7 मिमी बारिश होती है, जिसमें सितंबर में मात्र 13 फीसदी ही बारिश होती है।

मौसम विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, जून से अगस्त तक बारिश की कमी सितंबर में होने वाली बारिश से पूरी होने की संभावना नहीं है।

राज्य के बांधों में जल स्तर भी चिंताजनक रूप से निम्न स्तर पर है और केरल राज्य विद्युत बोर्ड (राज्य मुख्य रूप से जल विद्युत परियोजनाओं द्वारा उत्पन्न बिजली पर निर्भर है) द्वारा प्रबंधित जलाशयों में भंडारण क्षमता का केवल 37 प्रतिशत पानी है।

बिजली मंत्री ने मीडिया को बताया कि राज्य पानी की कमी और बिजली कटौती की संभावनाओं पर विचार कर रहा है। ऊंची कीमतों पर बाहरी स्रोतों से बिजली खरीदने की योजना है।

आईएमडी के अनुसार, 1901 के बाद से राज्य में केवल 14 बार कम बारिश हुई है और आखिरी बार 2016 में बारिश कम हुई थी।

अल-नीनो प्रभाव को कम बारिश का एक प्रमुख कारण माना जाता है और मौसम विज्ञान ब्यूरो, ऑस्ट्रेलिया के अनुसार, समुद्र की सतह का तापमान (एसएसटी) विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में अल-नीनो सीमा से अधिक हो रहा है।

जलवायु मॉडल संकेत दे रहे हैं कि एसएसटी का अल नीनो सीमा से अधिक होना जनवरी 2024 तक जारी रह सकता है।

मौसम विशेषज्ञ आने वाले दिनों में हिंद महासागर डिप्लो (आईओडी) के सकारात्मक रहने की उम्मीद कर रहे हैं और इससे अल-नीनो प्रभाव कम हो सकता है, जिससे राज्य में बारिश के साथ मौसम सामान्य हो सकता है।

हालाँकि आईओडी अभी भी तटस्थ है जिसके कारण राज्य में अगले कुछ सप्‍ताह तक बारिश की कमी बनी रहेगी।

राज्य में सामान्य से काफी कम बारिश होने और प्रशांत उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अल-नीनो कारक के मंडराने और समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि के कारण, राज्य को सूखे के खतरे का सामना करना पड़ रहा है।

केरल सरकार के सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि राज्य अपने धान और अन्य खेती के लिए मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम मानसून पर निर्भर है और अगर बारिश लुका-छिपी खेलती है, तो राज्य में धान की खेती प्रभावित होगी।

पलक्कड़ और कासरगोड में फसल बर्बाद होने का खतरा अधिक है और कई किसान बोरवेल के पानी का उपयोग करके अपने धान के खेतों को पानी दे रहे हैं।

राष्ट्रीय मौसम एजेंसी से सेवानिवृत्त डॉ. आर. राजीव ने आईएएनएस को बताया, “अभी राज्य में सूखे जैसी स्थिति है और भारी बारिश से मौजूदा नुकसान की भरपाई की संभावना बहुत निश्चित नहीं है। हम सितंबर में बारिश की उम्मीद कर रहे हैं और यह देखना होगा कि प्रशांत क्षेत्र में मौजूदा मौसम की स्थिति को देखते हुए यह कितनी प्रभावी होगी।

–आईएएनएस

एकेजे

Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button