मजबूत गढ़ को बचाकर और विपक्षियों के गढ़ में सेंध लगाकर 2024 में लगातार तीसरी बार चुनाव जीतने की भाजपा की तैयारी
नई दिल्ली, 19 अगस्त (आईएएनएस)। 2024 के लोकसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार जीत कर केंद्र में सरकार बनाने के मिशन में जुटी भाजपा ने अपना चुनावी प्लान तैयार कर उसे अमलीजामा पहनाना या यूं कहें की जमीनी धरातल पर उतारना शुरू कर दिया है।
बड़े स्तर पर भाजपा की रणनीति की बात की जाए तो विपक्षी गठबंधन की तैयारियों को देखते हुए भाजपा 50 प्रतिशत प्लस वोट बैंक हासिल करने की रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी की योजना जहां एक तरफ अपने मजबूत गढ़ों को बचाना है तो वहीं इसके साथ-साथ ही विपक्षी दलों के मजबूत गढ़ों में सेंध भी लगानी है।
पार्टी 2019 में साथ मिलकर लड़े और अभी विपक्षियों के साथ खड़े नीतीश कुमार और उद्धव ठाकरे को भी सबक सिखाना चाहती है।
2019 में हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों की बात करें तो भाजपा ने सहयोगी दल अपना दल (एस) के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश की 80 में से 64 सीटों पर जीत हासिल की थी। पिछली बार हारने वाली 16 सीटों पर भी भाजपा इस बार विशेष ध्यान दे रही है।
महाराष्ट्र में भाजपा ने शिवसेना के साथ मिलकर प्रदेश की 48 लोकसभा सीटों में से 41 पर जीत हासिल की थी। आज उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना इंडिया गठबंधन में शामिल है। इसलिए भाजपा एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना और अजित पवार के साथ मिलकर महाराष्ट्र की सभी 48 सीटों पर जीत हासिल करने की रणनीति पर काम कर रही है।
भाजपा ने बिहार में 2019 में जेडीयू और लोजपा के साथ मिलकर राज्य की 40 सीटों में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन आज 16 सीटें जीतने वाले नीतीश कुमार विपक्षी खेमे में हैं। भाजपा नीतीश कुमार के वोट बैंक एवं सांसदों में सेंध लगाने के साथ ही जमीनी स्तर पर जातीय समीकरणों को साधते हुए इस बार भी पिछला प्रदर्शन दोहराना चाहती है।
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने मध्य प्रदेश की 29 में से 28 , कर्नाटक की 28 में से 25, गुजरात की 26 में से सभी 26, राजस्थान की 25 में से सभी 25 (सहयोगी दल के साथ मिलकर), हरियाणा की 10 में से सभी 10, उत्तराखंड की 5 में से सभी 5, दिल्ली की 7 में से सभी 7, हिमाचल प्रदेश की 4 में से सभी 4, झारखंड की 14 में से 11, छत्तीसगढ़ की 11 में से 9 और असम की 14 में से 9 सीटों पर जीत हासिल की थी।
भाजपा ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में अकेले अपने दम पर 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल किया था। भाजपा की कोशिश इन राज्यों में भी इस बार 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल कर विपक्षी एकता को मात देने की है।
भाजपा को 2019 में महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ मिलकर और बिहार में नीतीश कुमार एवं रामविलास पासवान के साथ मिलकर 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल हुआ था। भाजपा इस बार नए सहयोगियों के साथ मिलकर फिर से उसी करिश्मे को दोहराना चाहती है।
हालांकि भाजपा को इस बात का भी बखूबी अहसास है कि अगर विपक्षी एकता की कोशिश सही में कामयाब हो जाती है तो पार्टी के लिए मुश्किलें बढ़ सकती है इसलिए पार्टी उन राज्यों पर भी ज्यादा ध्यान दे रही है जहां या तो विपक्षी एकता कतई मुमकिन नहीं है या जहां पिछली बार भाजपा का प्रदर्शन बेहतर नहीं रहा था या जहां पर इस बार भाजपा को अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद है।
भाजपा को 2019 में आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु में एक भी सीट नहीं मिली थी इसलिए भाजपा इस बार इन तीनों राज्यों में खाता खोलने की कोशिश कर रही है। आंध्र प्रदेश में वर्तमान सत्तारूढ़ पार्टी वाईएसआर कांग्रेस के इंडिया गठबंधन में जाने की संभावना नहीं है। वहीं पार्टी को यह भी लगता है कि केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ और सीपीएम के नेतृत्व वाली एलडीएफ का मिलकर लड़ना संभव नहीं है और अगर ये मिलकर लड़ते भी हैं तो ईसाई और हिन्दू मतदाताओं के बल पर केरल में भी भाजपा का खाता खुलना तय है।
पार्टी तमिलनाडु में पहली बार अपनी सहयोगी एआईएडीएमके से बराबरी के स्तर पर बात कर रही है और उसे लगता है कि मजबूत संगठन और सहयोगी दलों के बल पर तमिलनाडु में पार्टी का खाता खुल सकता है। केंद्र सरकार की एक कद्दावर महिला मंत्री इस बार तमिलनाडु से चुनाव लड़ने की तैयारी भी कर रही है।
भाजपा को 2019 में पश्चिम बंगाल में 42 में से 18, ओडिशा में 21 में से 8, तेलंगाना में 17 में से 4 और पंजाब में 13 में से 2 सीटों पर जीत हासिल हुई थी (पंजाब में अकाली दल भी 2 सीटों पर जीती थी, लेकिन इस बार वह भाजपा के साथ नहीं है।)
भाजपा की कोशिश इन चारों राज्यों में पार्टी सांसदों की संख्या को बढ़ाना है।
भाजपा चुनावी लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक साथ कई स्तरों पर काम कर रही है। एक तरफ जहां लोकसभा की कमजोर माने जाने वाली 160 सीटों पर केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा नेताओं की फौज उतारकर लोकसभा प्रवास योजना के जरिए जनाधार को बढ़ाया जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ 2019 में जीतने वाले 303 सीटों पर भी इस बार कमजोर और सक्रिय नहीं रहने वाले उम्मीदवारों को बदलने के लिए नए उम्मीदवारों की तलाश की जा रही है।
वहीं, लोकसभा चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर माइक्रो स्तर तक जाकर मैनेजमेंट करने के लिए और कामकाज को संगठित एवं सरल बनाने के लिए भाजपा ने पहली बार देशभर के सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को तीन सेक्टरों में बांट दिया है। इन सेक्टरों को – ईस्ट रीजन, नार्थ रीजन और साउथ रीजन का नाम दिया गया है। पार्टी इन तीनों रीजन में शामिल राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के नेताओं की अलग-अलग बैठक भी कर चुकी है।
–आईएएनएस
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