दुनिया

भारत के स्वतंत्रता संग्राम ने कैसे दुनिया को किया प्रभावित? इन देशों को भी ऐसे ही मिली आजादी

15 अगस्त को भारत अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। स्वतंत्रता के लिए भारत की लंबी लड़ाई लड़ी। इस लड़ाई की वजह से ही हमें 15 अगस्त, 1947 को आजादी मिली। देश को यह आजादी अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों और कड़े संघर्ष के बाद हासिल हुई थी। इस स्वतंत्रता सग्राम ने हमें अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराया ही इसके साथ ही इसने दुनियाभर के राजनीतिक आंदोलनों को भी काफी प्रभावित किया। आज हम उन्हीं आंदोलनों के बारे में जानेंगे जिन पर भारत के स्वाधीनता संग्राम का असर पड़ा…

दक्षिण कोरिया 
1947 में भारत की स्वतंत्रता ने राष्ट्रवादी आंदोलनों को प्रेरित किया और पूरी दुनिया में उपनिवेशवाद से मुक्ति और स्वतंत्रता के लिए एक बेहतरीन मॉडल प्रस्तुत किया। 1950 तक, पुरानी औपनिवेशिक व्यवस्था ने अपनी ताकत और अपनी ऐतिहासिक प्रासंगिकता खो दी थी। भारत की स्वतंत्रता ने अन्य देशों के लिए स्वतंत्रता की मांग के लिए उत्प्रेरक की तरह काम किया। इस वजह से अंग्रेज, जापान और फ्रांस को अपने-अपने उपनिवेशों को खोना पड़ा।

1921 में अपने चरम पर पहुंचे असहयोग आंदोलन का कोरियाई स्वतंत्रता आंदोलन पर अप्रत्याशित प्रभाव पड़ा था। भारत और कोरियाई प्रायद्वीप के बीच स्वतंत्रता-पूर्व संबंधों के सबूत मध्य सियोल के एक छोटे से पार्क में मिलते हैं। भारत की आजादी से ठीक दो साल पहले, उसी तारीख को, कोरियाई प्रायद्वीप 35 साल के जापानी कब्जे से मुक्त हो गया था।
ग्वांगवामुन से कुछ ही दूरी पर स्थित टैपगोल पार्क 1919 के एक मार्च आंदोलन का स्थल है। कई इतिहासकारों का मानना है कि यहीं से कोरियाई स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत हुई थी। दक्षिण कोरिया के इसी पार्क से स्वतंत्रता की उद्घोषणा की गई थी।

कुछ कोरियाई शिक्षाविदों का मानना है कि भारत का स्वतंत्रता आंदोलन मार्च फर्स्ट आंदोलन से प्रेरित था। 1910 और 1945 के बीच जापानी साम्राज्य ने 1876 की जापान-कोरिया संधि के बाद कोरियाई प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया था। 1905 की जापान-कोरिया संधि या एल्सा संधि ने कोरियाई प्रायद्वीप को जापान का संरक्षित क्षेत्र बना दिया। इसके पांच वर्षों बाद इस पर औपचारिक रूप से जापान ने कब्जा कर लिया। कोरियाई प्रायद्वीप को 35 साल के संघर्ष के बाद 1945 में जापान से आजादी मिली।

1920-1930 के बीच डोंग-ए-इल्बो और चोसोन इल्बो जैसे अखबारों में प्रकाशित लेख बताते हैं कि ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारतीय उपमहाद्वीप की लड़ाई देश तक पहुंच रही थी। इन रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि कैसे आधिकारिक राजनयिक संबंधों के अभाव के बावजूद कोरियाई प्रायद्वीप भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन विशेषकर महात्मा गांधी के बारे में जागरुक था। भारत के 1920-22 के असहयोग आंदोलन और 1931-34 के सविनय अवज्ञा आंदोलन पर लगभग दैनिक रिपोर्टें इन अखबारों में आती थीं।

कोरियाई राष्ट्रवादी नेता चो मान-सिक ने गांधी के स्वदेशी आंदोलन से प्रेरित थे। सिक ने घरेलू उत्पादन पर भरोसा करके विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के गांधी के अभियान से प्रेरित होकर कोरियाई औद्योगिक उत्पादन का समर्थन करने का प्रस्ताव रखा था।

दिसंबर 1922 में योम ताए-जिन और यी क्वांग-सु जैसे अन्य राष्ट्रवादी नेताओं ने कोरियाई लोगों के बीच स्थानीय वस्तुओं की खपत को प्रोत्साहित करने के लिए सियोल में सेल्फ प्रोडक्शन एसोसिएशन नामक एक समूह का गठन किया। डोंग-ए-इल्बो अखबार के अध्यक्ष किम सुंग-सू द्वारा अक्टूबर 1926 में महात्मा गांधी को एक पत्र भेजा गया था जिसमें उनसे कोरियाई लोगों को एक संदेश भेजने के लिए कहा गया था।

आधुनिक दक्षिण कोरिया में गांधी भारत की सबसे अधिक मान्यता प्राप्त राजनीतिक हस्तियों में से एक हैं। 2019 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति मून जे-इन की उपस्थिति में सियोल में महात्मा गांधी की एक प्रतिमा का अनावरण किया था।

श्रीलंका 
1948 में अपनी आजादी पाने वाले श्रीलंका का स्वतंत्रता आंदोलन भी गांधीजी से प्रेरित था। श्रीलंकाई स्वतंत्रता सेनानी चार्ल्स एडगर कोरिया द्वारा आमंत्रित किए जाने के बाद गांधी ने 1927 में श्रीलंका का दौरा किया था। देश की उनकी एकमात्र यात्रा के दौरान गांधीजी ने कई भाषण दिए और श्रीलंका में एक स्थायी प्रभाव छोड़ा।

सीलोन टुडे के एक लेख में उल्लेख किया गया कि कैसे गांधी की अहिंसा की नीति ने श्रीलंका की स्वतंत्रता संघर्ष को ‘अत्यधिक प्रभावित’ किया। भारत के स्वतंत्रता संग्राम ने बौद्ध पुनरुत्थानवादी अनागारिका धर्मपाल सहित कई उल्लेखनीय नेताओं को आंदोलित किया। लेख में बताया गया है कि कैसे धर्मपाल ने गांधी के विदेशी निर्मित कपड़ों के बहिष्कार और स्थानीय स्तर पर उत्पादित कपड़े को अपनाने का फैसला किया।

अमेरिका 
अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन मोहनदास गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से व्यापक रूप से प्रभावित था। 1968 में अपनी मृत्यु तक अफ्रीकी-अमेरिकियों के लिए नागरिक अधिकार आंदोलन का नेतृत्व करने वाले डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर पर गांधी के प्रभाव को कम करके नहीं आंका जा सकता।

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के अनुसार, मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने पहली बार अपने मदरसा प्रशिक्षण के दौरान गांधी की शिक्षाएं हासिल की थीं। किंग ने कहा था कि गांधी का अहिंसा का दर्शन स्वतंत्रता के संघर्ष में उत्पीड़ित लोगों के लिए खुला एकमात्र नैतिक और व्यावहारिक रूप से अच्छा तरीका था। किंग ने अपनी पुस्तक स्ट्राइड टुवर्ड फ्रीडम में भी गांधीजी की अहिंसा की कई शिक्षाओं का उल्लेख किया।

दक्षिण अफ्रीका 
दक्षिण अफ्रीका में 1961 के दशक से शुरू होकर लगभग तीन दशक तक चलने वाले रंगभेद विरोधी आंदोलन को भी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से प्रेरणा मिली। आंदोलन के अग्रदूत नेल्सन मंडेला ने गांधी को अपना ‘आदर्श’ बताया था।  जेल में बिताए गए लगभग तीन दशकों के दौरान उन्होंने गांधीजी की किताबें बड़े चाव से पढ़ीं। जेल से रिहा होने पर मंडेला रंगभेद मुक्त दक्षिण अफ्रीका के पहले राष्ट्रपति बने और अपने सत्य के रास्ते पर चलकर देश को एक साथ लाए। प्रोग्रेसिव मैगजीन ने भारत में दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राजदूत हैरिस माजेके के हवाले से लिखा, ‘नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पिता हैं, जबकि महात्मा गांधी हमारे दादा हैं।’

दक्षिण अफ्रीका 
दक्षिण अफ्रीका में 1961 के दशक से शुरू होकर लगभग तीन दशक तक चलने वाले रंगभेद विरोधी आंदोलन को भी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से प्रेरणा मिली। आंदोलन के अग्रदूत नेल्सन मंडेला ने गांधी को अपना ‘आदर्श’ बताया था।  जेल में बिताए गए लगभग तीन दशकों के दौरान उन्होंने गांधीजी की किताबें बड़े चाव से पढ़ीं। जेल से रिहा होने पर मंडेला रंगभेद मुक्त दक्षिण अफ्रीका के पहले राष्ट्रपति बने और अपने सत्य के रास्ते पर चलकर देश को एक साथ लाए। प्रोग्रेसिव मैगजीन ने भारत में दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राजदूत हैरिस माजेके के हवाले से लिखा, ‘नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पिता हैं, जबकि महात्मा गांधी हमारे दादा हैं।’

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