बारिश और बाढ़ के प्रकोप के पीछे ग्लोबल वार्मिंग जिम्मेदार: विशेषज्ञ
नई दिल्ली, 20 अगस्त (आईएएनएस)। देशभर में इस वर्ष भारी बारिश और बाढ़ के कहर के पीछे ग्लोबल वार्मिंग जिम्मेदार है। विशेषज्ञों के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का असर हिमालय क्षेत्र में ‘अनियंत्रित’ तापमान पर भी देखा गया, जिसकी वजह से हाल ही में बाढ़ ने कहर बरपाया है।
यूके के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंस और यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के मौसम विज्ञानी और अनुसंधान वैज्ञानिक अक्षय देवरस बताते हैं कि ब्रेक-मानसून स्थितियों के दौरान ग्लोबल वार्मिंग के कारण हवा में नमी की क्षमता बढ़ने से वर्षा में वृद्धि होती है।
विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हैं कि भले ही अनुकूल परिस्थितियों ने भारी वर्षा में योगदान दिया हो, लेकिन जलवायु परिवर्तन ऐसी घटनाओं की तीव्रता को काफी हद तक बढ़ा देता है। हाल ही में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन, जिसके परिणामस्वरूप जानमाल की हानि हुई, यह ग्लोबल वार्मिंग का स्पष्ट उदाहरण हैं।
एक अन्य विशेषज्ञ ने कहा, “हर मौसम अपने चरम पर पहुंच रहा है, यह चिंताजनक है। 2023 का मानसून इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि अनियंत्रित ग्लोबल वार्मिंग हिमालय क्षेत्र को कैसे प्रभावित कर सकती है, जैसा कि क्लाइमेट ट्रेंड्स द्वारा संकलित एक रिपोर्ट में जोर दिया गया है।”
उत्तराखंड के श्रीनगर में गढ़वाल विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने कहा कि मलबे, बलुआ पत्थर और शेल चट्टान से बने होने के कारण शिवालिक रेंज को भारी वर्षा, वनों की कटाई और अनियमित निर्माण से खतरा है।
2023 के मानसून सीजन में भारत के कई क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वर्षा हुई। जुलाई से अगस्त तक बाढ़ देखी गई, जिसने पिछले रिकॉर्ड तोड़ दिए। जहां कुछ क्षेत्र अत्यधिक बारिश से जूझ रहे थे, वहीं अन्य को लंबे समय तक शुष्क स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।
दिल्ली, चंडीगढ़, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में बारिश के रिकॉर्ड टूट गए, जबकि कई क्षेत्रों में बारिश में कमी देखी गई।
वैश्विक वैज्ञानिक मौसम की बदलती गतिशीलता के लिए ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार मानते हैं। एक वैज्ञानिक ने कहा,“मौसम संबंधी मानदंडों में महत्वपूर्ण बदलाव लाया है, जिससे यह असाधारण मौसम परिदृश्य सामने आया है। जुलाई के महीने में बारिश में 15 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, जो अपेक्षित मानदंडों से अधिक है।”
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मौसमी पूर्वानुमान में सामान्य मानसून की स्थिति का संकेत दिया गया है, जिसका अनुमानित स्तर लंबी अवधि के औसत (एलपीए) के 96 प्रतिशत से 104 प्रतिशत के बीच है।
मानसून पर अल नीनो का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। सकारात्मक हिंद महासागर डिपोल (आईओडी) और यूरेशियन क्षेत्र में बर्फ का आवरण भी ग्रीष्मकालीन मानसून को आकार देने में भूमिका निभाता है, जबकि यूरेशियन बर्फ आवरण की सीमा भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा पर विपरीत प्रभाव डालती है।
जून में कमजोर अल नीनो की स्थिति देखी गई जो भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान के औसत से ऊपर था। पूर्वानुमानों से पता चलता है कि पतझड़ के दौरान अल नीनो की तीव्रता जारी रहेगी, जिसका चरम सर्दियों में मध्यम से तीव्र स्तर पर होगा।
वायुमंडल, भूमि और महासागरों के गर्म होने से वातावरण में नमी बनाए रखने में तेजी आती है। इस बढ़ी हुई नमी की मात्रा से पृथ्वी की सतह से वाष्पीकरण बढ़ जाता है, जिससे हवा की पानी धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है।
वैज्ञानिकों ने बताया कि नतीजतन, इसके परिणामस्वरूप अक्सर छोटे क्षेत्रों में कम अवधि में भारी बार वर्षा होती है।
भारत के मानसून वर्षा पैटर्न में हाल के दशकों में जलवायु परिवर्तन देखा गया है, जिसमें तीव्र वर्षा के साथ लंबे समय तक शुष्क मौसम आम हो गया है। इस कारणएक ही मौसम में बाढ़ और सूखा दोनों देखने को मिलते हैं।
–आईएएनएस
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