झारखंड की पंचायतों में 56 फीसदी पदों पर चुने जाने के बाद भी पहचान की कठिन लड़ाई लड़ रहीं महिलाएं
रांची, 24 सितंबर (आईएएनएस)। झारखंड की ग्राम पंचायतों के लिए चुनी गईं महिला जनप्रतिनिधि कितनी सक्रिय हैं, यह परखने के लिए कुछ महीने पहले झारखंड के एक मीडिया हाउस ने दिलचस्प प्रयोग किया। मीडिया हाउस के प्रतिनिधियों ने राज्य के धनबाद जिले में 95 महिला मुखिया (प्रधान) के मोबाइल नंबरों पर कॉल किया। चौंकाने वाला नतीजा यह सामने आया कि इनमें से 84 महिला मुखिया का कॉल उनके पति, देवर, पुत्र या किसी अन्य रिश्तेदार ने उठाया। अधिकतर ने कहा…मैं मुखिया जी का पति। अन्य ने कहा…मैं मुखिया जी का देवर, मैं मुखिया जी का बेटा…बोलिए, क्या काम है?
95 में से सिर्फ 11 महिला मुखिया ऐसी थीं, जिन्होंने अपने मोबाइल पर कॉल खुद रिसीव किया। इनमें भी दो-तीन ने अपनी पंचायत में चल रही विकास योजनाओं के बारे में पूछे जाने पर कहा कि इस बारे में उनके पति या उनके रिश्तेदार बेहतर बता पाएंगे, क्योंकि फील्ड का काम वही देखते हैं।
दरअसल, झारखंड के ज्यादातर ग्राम पंचायतों के कार्यों और विकास योजनाओं में महिला जनप्रतिनिधियों की भागीदारी की कड़वी हकीकत यही है। राज्य में त्रिस्तरीय ग्राम पंचायत राज व्यवस्था में महिलाओं के लिए कुल 50 फीसदी आरक्षण है।
पिछले साल अप्रैल-मई में राज्य में हुए चुनाव में पंचायती राज संस्थाओं के कुछ 63701 पदों में से करीब 40 हजार पदों पर महिलाएं चुनी गई हैं। पंचायत स्तर की राजनीति में महिलाओं की संख्यात्मक भागीदारी के हिसाब से यह आंकड़ा बेहद उम्मीद जगाने वाला माना जाना चाहिए, लेकिन जमीनी हकीकत इसके विपरीत है। महिला जनप्रतिनिधियों के नाम पर उनके पतियों या उनके घर के किसी प्रभावशाली पुरुष ही उनका कामकाज देखते हैं।
झारखंड में महिला मुखिया (प्रधान) के पति को आम तौर पर एमपी यानी “मुखिया पति” या “मुखिया प्रतिनिधि” के रूप में पुकारा-पहचाना जाता है। ज्यादातर पंचायतों की बैठकों में महिला मुखिया की जगह उनके पति ही भाग लेते हैं। पंचायतों के फैसलों की कमान भी उन्हीं के हाथ में होती है।
यहां तक कि ब्लॉक, अनुमंडल और जिला स्तर पर प्रशासनिक पदाधिकारियों से मुलाकात करते हुए ये लोग अपना परिचय मुखिया के पति या प्रतिनिधि के रूप में देते हैं। झारखंड में पंचायत और प्रखंड स्तर पर शांति-व्यवस्था के लिए शांति समितियां भी होती हैं। वहां भी महिला जनप्रतिनिधियों के नाम पर उनके पति या परिवार का प्रभावशाली पुरुष सदस्य सक्रिय भूमिका में रहते हैं।
हालांकि राज्य सरकार ने सभी जिलों के उपायुक्तों को पत्र लिखकर महिला जनप्रतिनिधियों की जगह उनके पति, पिता या परिजनों को बैठक या सभा में शामिल होने पर रोक लगाने का निर्देश दे रखा है।
पंचायती राज व्यवस्था के सशक्तिकरण से जुड़े मुद्दों पर पिछले दो दशक से काम कर रहे मंथन नामक संस्था के प्रमुख और वरिष्ठ पत्रकार सुधीर पाल कहते हैं, “2022 में पंचायत चुनाव जीतकर करीब 56 प्रतिशत पदों पर महिलाएं स्थानीय शासन व्यवस्था का हिस्सा बनी हैं। झारखंड के आदिवासी बहुल इलाकों की महिला जनप्रतिनिधि अपने अधिकारों के प्रति ज्यादा सजग हैं। पंचायतों के कामकाज में भी उनकी सक्रिय भागीदारी लगातार बढ़ी है। इसकी वजह यह है कि आदिवासी समाज में महिला-पुरुष का भेदभाव अपेक्षाकृत कम है। सामान्य ग्रामीण समाज की तुलना में आदिवासी समाज की महिलाएं सामाजिक तौर पर ज्यादा अग्रणी और सक्रिय रही हैं।”
चुनाव जीतने के बावजूद पंचायतों में महिला जनप्रतिनिधियों के लिए अपनी अलग पहचान और अलग रास्ता बना पाना बहुत आसान नहीं रहा है। पुरुष सत्तात्मक ग्रामीण समाज आसानी ने महिला को प्रमुख या प्रभावी भूमिका में नहीं देखना चाहता।
झारखंड के दुमका जिले की दुधानी पंचायत में कुछ महीने पहले आदिवासी महिला मुखिया जूली मरांडी के साथ उसी पंचायत के उप मुखिया राकेश यादव समेत छह लोगों ने पंचायत भवन में मारपीट की थी और बाल पकड़कर घसीटते हुए पंचायत भवन से बाहर कर दिया था। यही नहीं उन्होंने मुखिया को जाति सूचक गालियां भी दी। पुलिस ने बाद में इनमें से कुछ आरोपियों का गिरफ्तार किया था।
बीते जुलाई महीने में पलामू जिले के लेस्लीगंज ब्लॉक अंतर्गत पुरनाडीह पंचायत की मुखिया गुड्डी देवी के साथ प्रखंड के बीडीओ द्वारा बदसलूकी की शिकायत सामने आई। गुड्डी देवी का कहना है कि वह ग्राम स्वराज अभियान के दौरान सभी में अपने पंचायत की स्थिति पर माइक पर बोल रही थीं, तब बीडीओ ने उनके हाथ जबरन माइक छीन ली और दुर्व्यवहार किया।
हजारीबाग के वरिष्ठ पत्रकार प्रसन्न मिश्र कहते हैं, “पंचायतों में भले 56 फीसदी से ज्यादा महिलाओं का प्रतिनिधित्व है, लेकिन सही मायने में वे अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं कर पा रही हैं। आज भी ग्राम सभा में महिलाओं की भागीदारी सहज नहीं हो पाई है।“
हालांकि विषम परिस्थितियों के बीच भी राज्य में पंचायतों की कई महिला जनप्रतिनिधियों ने अपनी सक्रियता और कामकाज से अलग पहचान बनाई और राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत भी हुईं।
बीते मार्च महीने में रांची के पिठौरिया की मुखिया मुन्नी देवी को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों स्वच्छ सुजल शक्ति सम्मान प्राप्त हुआ। उन्होंने अपनी ग्राम पंचायत में जल संरक्षण, तरल कचरा प्रबंधन और ओडीएफ प्लस के लिए शानदार काम किया।
जिस पंचायत में पानी का गंभीर संकट था, वहां अब हर घर में नल पहुंच चुका है। सरकार की योजना को पंचायत के घर-घर तक पहुंचाने के लिए उन्होंने जबरदस्त काम किया। मुन्नी देवी कहती हैं, “यह पंचायत के हर व्यक्ति का सम्मान है। सरकारी योजना को धरातल पर उतारने में सबने सहयोग किया।”
झारखंड की राजधानी रांची के समीप कमड़े पंचायत की मुखिया नीलम तिर्की कभी दिहाड़ी मजदूरी करती थीं। वर्ष 2010 में पहली बार पंचायत में वार्ड सदस्य चुनी गईं। उन्होंने बेहतर काम किया इसके बाद लगातार दो बार मुखिया पद के लिए चुनी गईं।
इसी तरह गिरिडीह के बिरनी प्रखंड अंतर्गत कपिलो पंचायत की मुखिया रहीं इंदु देवी ने पूरे पंचायत की तस्वीर बदल डाली। उन्होंने पंचायत के स्कूलों की व्यवस्था में सुधार के साथ-साथ जल प्रबंधन, कचरा निकासी, शौचालय निर्माण, सड़क निर्माण के क्षेत्र में इतना शानदार काम किया कि उन्हें लगातार तीन वर्ष 2018, 2019 और 2020 में नानाजी देशमुख सर्वोत्तम पंचायत सतत विकास राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल हुआ। इस पंचायत को दीनदयाल उपाध्याय पंचायती राज पुरस्कार के लिए भी चुना गया था।
पंचायतों से इतर राज्य की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी में लगातार वृद्धि हुई है। वर्ष 2000 में जब झारखंड बना था, तब राज्य की विधानसभा में महिला विधायकों का अनुपात सिर्फ पांच फीसदी थी।
वर्ष 2010 में यह 10 फीसदी हुआ और मौजूदा विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या प्रतिशत के लिहाज 14.81 फीसदी है। राज्य की 82 सदस्यीय विधानसभा में कुल 12 महिला विधायक है। यह राज्य में महिला विधायकों की अब तक की सर्वाधिक संख्या है।
–आईएएनएस
एसएनसी/एसकेपी