कोयला घोटाला केस : कोर्ट ने पूर्व इस्पात मंत्री के कार्यकारी सचिव को 3 साल जेल की सजा सुनाई

नई दिल्ली, 22 अगस्त (आईएएनएस)। दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को छत्तीसगढ़ में कोयला ब्लॉक के आवंटन में कथित अनियमितताओं से संबंधित कोयला घोटाला केस में इस्पात मंत्रालय के जेपीसी (संयुक्त संयंत्र समिति) के पूर्व कार्यकारी सचिव को तीन साल की जेल की सजा सुनाई है।

कोयला घोटाले में 14वीं सजा सुनाते हुए विशेष न्यायाधीश अरुण भारद्वाज ने कहा कि गौतम कुमार बसाक को विजय सेंट्रल कोल ब्लॉक आवंटन में भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया है और उन पर 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, जनवरी 2007 में कोयला ब्लॉक के लिए आवेदन करने वाली प्रकाश इंडस्ट्रीज लिमिटेड के खिलाफ आरोप लगाया गया था कि उसने अपनी क्षमता के बारे में गलत जानकारी दी थी।

मंत्रालय ने बसाक को आरोप की सच्चाई का पता लगाने का निर्देश दिया था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, इस्पात मंत्रालय के अधिकारी ने 2008 में कंपनी द्वारा किए गए दावों का समर्थन करते हुए एक झूठी रिपोर्ट पेश की।

कंपनी और उसके निदेशक को पहले इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने बरी कर दिया था। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सीबीआई की अपील फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

ट्रायल कोर्ट में सीबीआई का प्रतिनिधित्व उसके उप कानूनी सलाहकार संजय कुमार ने किया।

पूर्व कोयला सचिव एच.सी. गुप्ता और पूर्व आईएएस अधिकारी के.एस. क्रोफा ने अपनी दोषसिद्धि और जेल की सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील को चुनौती दी है।

न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा की पीठ ने नोटिस जारी किया और कहा कि मामले का निपटारा होने तक दोनों अपीलकर्ता जमानत पर रहेंगे।

न्यायाधीश ने कहा कि अपीलों को अन्य दोषियों पूर्व राज्यसभा सांसद विजय दर्डा, उनके बेटे देवेंद्र दर्डा और जेएलडी यवतमाल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक मनोज कुमार जयसवाल द्वारा दायर अपीलों के साथ उचित समय पर सूचीबद्ध किया जाएगा।

28 जुलाई को हाईकोर्ट ने दर्डा और जयासवाल को अंतरिम जमानत दे दी, जिन्हें चार साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। दिल्ली की अदालत ने उन्हें चार साल की जेल की सजा सुनाई थी। जबकि, गुप्ता, क्रोफा और के.सी सामरिया को तीन साल की सजा सुनाई गई थी।

20 नवंबर 2014 को कोर्ट ने इस मामले में सीबीआई की ओर से सौंपी गई क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया था। अदालत ने जांच एजेंसी को नए सिरे से जांच शुरू करने का निर्देश दिया था, जिसमें कहा गया था कि पूर्व सांसद दर्डा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, जिनके पास कोयला विभाग भी था, को संबोधित पत्रों में तथ्यों को ‘गलत तरीके से प्रस्तुत’ किया था।

अदालत के अनुसार, विजय दर्डा, जो लोकमत समूह के अध्यक्ष हैं, ने जेएलडी यवतमाल एनर्जी के लिए छत्तीसगढ़ में फतेहपुर (पूर्व) कोयला ब्लॉक प्राप्त करने के लिए इस तरह की गलत बयानी का सहारा लिया।

अदालत ने फैसला सुनाया था कि धोखाधड़ी का कार्य निजी संस्थाओं द्वारा एक साजिश के तहत किया गया था, जिसमें निजी पक्ष और लोक सेवक दोनों शामिल थे। जेएलडी यवतमाल एनर्जी को 35वीं स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा फतेहपुर (पूर्व) कोयला ब्लॉक प्रदान किया गया था।

शुरुआत में, सीबीआई ने अपनी एफआईआर में आरोप लगाया था कि जेएलडी यवतमाल ने 1999 और 2005 के बीच अपने समूह की कंपनियों को चार कोयला ब्लॉकों के पिछले आवंटन को गैरकानूनी तरीके से छुपाया था।

हालांकि, एजेंसी ने बाद में एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की, जिसमें कहा गया था कि कोयला ब्लॉक आवंटन के दौरान कोयला मंत्रालय द्वारा जेएलडी यवतमाल को कोई अनुचित लाभ नहीं दिया गया था।

–आईएएनएस

एफजेड/एबीएम

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